समाज के बारे मैं इसके रीति रिवाज़ के बारे मैं
करते नहीं क्यों एक दुसरे से मोहब्बत
सोचते हैं सिर्फ और सिर्फ अपने बारे मैं
सोचता हूँ हम मिटा दू सभी के दुःख दर्द
लेकिन ख्याल आता हैं लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे मैं
देखता हूँ सिसकती माँ और भूखे बच्चो को
रेलवे स्टेशन पर सड़क के किनारे मैं
सोचता हूँ पौछ दूँ इनके आंसू और भर दूँ इनके पेट
लेकिन ख्याल आता हैं लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे मैं
ठिठुरते हैं लोग नंगे बदन सर्द रातो मैं
अमीर लोगो के कुत्ते सोते हैं गर्म कम्बल और लिहाफो मैं
सोचता हूँ ढक दूँ सभी के तनो को ठंडी रातो मैं
लेकिन ख्याल आता हैं लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे मैं
जाती हैं जाने सेकड़ो लोगो की फुटपाथों पर
आये थे लावारिस चले गये लावारिस
सोचता हूँ रूबरू करा दूँ उनको उनकी पहचान के बारे मैं
लेकिन ख्याल आता हैं लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे मैं ...........................................
7 comments:
भाई इस दुनिया का सबसे बडा रोग... जानें क्या कहेंगे लोग.
बहुत अच्छी रचना..
kuch to log kahenge....kehne do...badhiya likha hai.
kuch to log kahenge, logo ka kaam hain kahanaa
chhodo, bekaar kee baato mein , kahi beet naa jaaye rainaa.
logon ki jo parwaah karte hain wo kabhi aage nahi badhte hain..
wahi karna chahiye jiske liye man ijazat de..
sundar kavita...
dhnywaad..
saab logo k bare me mat socho apne logo k bastavik dard ko samja h to usse dur karne k raste me logo ko mat ane do saab............samaj k priti apke aseem prem kable tareef h.............
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
nice my dear friends
iam praud of u ?
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