Saturday, June 20, 2009

हमारा स्वार्थ

बहुत दिन से मैं आदमी के निज हितों के बारे मैं सोच रहा था.जिसे हम स्वार्थ भी कहते हैं,क्या हमारे जीवन में स्वार्थ होना चाहिए या नही,सारी रात मैं यही सोचता रहा ,फिर मैंने सोचा की अगर मनुष्य स्वार्थ नही करेगा,तो वो अपने जीवन मैं कुछ नही कर सकता हैं,मेरे कहने का तात्पर्य ये हैं की ,मनुस्य को थोड़ा बहुत स्वार्थ भी करना चाहिए,क्योकि अगर स्वार्थ नही होगा ,तो व्यक्ति कुछ करेगा नही,और जब वो कुछ करेगा नही ,तो उसका मनुस्य योनी मैं होने का कोई फायदा नही होगा,उसका जीवन निहितार्थ चला जाएगा,क्योकि बिना स्वार्थ उसका जीवन उद्दसय विहीन हो जाएगा व्यक्ति को स्वार्थ भी करना चहिये,बहुत से लीग मेरी इस बात से सहमत भी होंगे और बाहुत से नही होंगे,इसलिए मैं यहाँ पर एक छोटा सा उद्धरण देना चाहूँगा
जब श्री राम चंद्र जी श्रीलंका ,सीता माता लेने जा रहे थे,तब समंदर पर आकर उनका काफिला रुक गया क्योकि वहां से आगे जाने का रास्ता नही था ,
तब उन्होंने वहां पर भगवन शिव की आराधना की,उन्होंने वहीँ पर शिव जी की आराधना क्यों की , कुओकी भगवन शिव ही उन्हें आगे का मार्ग दर्शन दे सकते थे
इसलिए मुझे लगा ,राम चंद्र जी श्री लंका जाने के लिए शिव जी की मदद चाहते थे थे
इसलिए ,वहां पर रामजी का स्वार्थ था,तो उन्होंने उनकी आराधना की ,इसलिए स्वार्थ करना भी जरूरी हैं,जब इसकी जरूरत हो
क्योकि व्यक्ति भगवन के पास तभी जाता हैं ,जब उसे किसी चीज की जरूरत हो ,सभी व्यक्ति अपने अपने स्वार्थ कि लिए ही मन्दिर, मस्जिद ,गुरु द्वारा , चर्च जाते हैं ,
सो अगर स्वार्थ होना भी जरूरी हैं, आगरा स्वार्थ नहो होगा ,तो व्यक्ति भगवन को भूल जायगा
और जब व्यक्ति , अपने पिता पर्मशवर को ही भूल जाएगा , .........................................
अब इससे आगे मैं क्या कहूँ
कृपया इस लेख पर अपने विचार अवस्य दे
ब्रज दीप (अभय)

Saturday, June 13, 2009

जीवन और उसके कुछ पहलु

जी हाँ ,ये जीवन हैं ये ही वो वन हैं जहाँ ,जहाँ हर तरीके का वृक्ष हैं ,अगर कुछ सुंदर पेड़ हैं ,तो बुरे पेड़ भी हैं यहाँ पर
यहाँ आपको सभी भोतिक सुख मिल जायेंगे,बस कभी अपने आप से मत पूछना के मुझे कितना और चाहिए जिससे मैं संतुष्ट हो जाओं ,क्योंकि इस वन को आज तक कोई पुरा नही कर पाया हैं ! तुम एक जगह भर दोगे ,तो कोई दूसरी जगह खाली हो जायेगी ,सो जैसा चलता हैं चलने दो ,मेरे एक दोस्त ने कहा हैं ,'हम सबको पता हैं हम उपर कुछ भी लेकर नही जा सकते हैं ,तब इतनी मारा मारी हैं , अगर उपर कुछ सामान ले जाने का सिस्टम होता तब यहाँ पर क्या होता '
कभी कभी लगता हैं ,भगवन ने एक अलग कोम बनाई थी इंसान ,की ये जानवरों से कुछ अलग होगा ,पर हम तो जानवरों को भी पीछे छोड़ने की तयारी मैं लगे हुए हैं ,मैं जानवरों और इंसान मैं विभिन्ताये देख रहा था ,मगर मुझे विभिंता नज़र नही आई ,आज के जीवन मैं इंसान केवल आपने बारे मैं सोचता हैं ,पहले अपना पेट भरने की कोसिस करता हैं ,अपनी जरुरत को पुरा करने की कोशिश करता हैं ,अपनी वासनाओ को शांत करता हैं
अब आप जानवरों के बारे मैं सोचे ! अगर कोई विभिंता आपको नज़र आए तो मुझे जरूर बताना ,तो फिर क्या अन्तेर रह गया जानवर और इन्सान मैं
हिंदू धर्मानुसार - हमारे यहाँ देवता तथा राक्षसः होते हैं
देवता सही कर्मो के लिए जाने जाते हैं तथा राक्षसः बुरे कार्यो के लिए ,हमारे अंदर ये दोनों होते हैं ,ये हमारी इच्छा सकती पर निर्भर करता हैं !की हम किसको प्रकट कर रहे हैं या हम किसको हाबी कर रहे हैं आपने उपर
मेरा कहने का तात्पर्य ये हैं की ,अगर हमे मनुस्य बनाया गया हैं तो जरूर किसी न किसी उदेस्सय के लिए ही बनाया गया हैं ,तो क्यों अपना जीवन दूसरे के सुख देख के दुखी होकर ख़राब कर रहे हो ,अपने अंदर के देवता को बहार निकालो ,और इस योनी मैं बता दो के हम ने वो कर दिया जो एक इंसान को कर दिया
कुछ लोगो ने अपने अंदर के देवता को बहार निकला ,और आज वो अमर हो गये,तो क्या हम साड़ी उमर उनके किस्से ही सुनते रहेंगे ,कुछ ऐसा करो के लोग तुम्हारे किस्से भी सुने ,तुम्हारे परिवार वाले ,तुम्हारे घरवाले गर्व के साथ कह सके की ये मेरा बेटा हैं ,की ये मेरा भांजा हैं ,की ये मेरा दोस्त हैं ,इसका मतलब ये बिल्कुल नही होता हैं की हम अगर एक डॉक्टर बन गये या एक इंजिनियर बन गये या कुछ भी बन गये जीविका चलने के लिए ,तो हमारा जीवन सफल हो गया !
अगर हम इस जीवन मैं एक अच्छे इन्सान न बन सके,तो डॉक्टर और इंजिनियर बन्ने का कोई फायदा नही अरे अपने आप को संतुष्ट तो जानवर भी करते हैं ,कभी दूओस्रो को संतुष्ट करके देखो जीवन मैं कितना आनद आता हैं
इतना आनंद five star मैं खाना खा ke नही आता हैं ,इतना आनंद आराम दायक बिस्तर मैं नही आता हैं, जितना आनंद दूसरो के काम करने मैं आता हैं । उनकी दुआ चीनी से भी मिट्ठी होती हैं
अपने लिए तो दुनिया करती हैं ,कभी दूसरो के लिए भी करके देखो ,जिंदगी जीने का मज़ा आ जाएगा !

Monday, June 8, 2009

ब्यंग

शादी से पहले मैं बेरोजगार था ,आज भी बेरोजगार हु ,फर्क बस इतना हैं पहले कवि था,आज कहानी कर हु ,कवि से कहानी कार बन्ने की भी एक कहानी हैं ,बात शादी से पहले की हैं थोद्दी पुराणी हें ,पहले मैं श्रंगार की कविता लिखता था, सकल सूरत से गीतकारदीखता था ,पर सदीके बाद जब श्री मति जी हमारे घर आई ,मेरे श्रंगारिक रूप को बहुत दिनों तक बर्दास्त नही केर पायी ,एक रात जब मैं कवि सम्मेलन से घर aaya , आब न देखा ताब झगड़ गयी ,

मैंने कहा प्रिया मेरे गीत हें तुम्हारे लिए , बे बोली देखो मुझे बेबकूफ मत बनाओ , सही सही बताओ जब मैं नही थी ,तो किसके लिए आहें भरा कर्त्ते थे , मैंने कहा प्रिया पहले मैं तुम्हारी कल्पना मैं गीत लिखता था अब तुम्हारे प्यार मैं गीत लिखता हूँ, फिर भी तुमको दौब्त फुल दीखता हू ,पर उन्हें मेरी बात samajh मैं नही आई, और और वो नाराज़ होके मायके चली गयी ,वहीँ से चिट्ठी भिजवाई ,गीत लिखना छोड़ दोगे ,तो वापिस ससुराल औंगी वरना साडी उमर मायके मैं बितौंगी ,

लाइफ को खतरे मैं जानकर बीबी की बात मानकर मैं हास्य लिखना सुरु केर दिया ,पर जल्द ही इसका परिणाम भी भुगत लिया , एक कवि सम्मलेन मैं मैं नेता जी पर एक हास्य रचना सुनायी रचना पब्लिक को तो बहुत पसंद आई पैर नेताजी को बिल्कुल नही भाई , रचना की समाप्ति पर , पब्लिक तालियाँ पीट रही थी , और नेताजी मुझे ,

मैं एक हफ्ते अस्पताल मैं रहा , उसके बाद मैंने किसी नेता के बारे मैं कुछ नही कहा ,अगले कवि सम्मलेन मैं मैंने एक पुलिस पैर हास्य रचना सुना दी ,तो एक दरोगा जी ने हमको अपनी पॉवर दिखा दी ,उनकी लाठी को आ गया जोश , मैं तीन दिन तक रहा बेहोश ,छूते दिन मैंने अपने आप को जेल के अंदर पाया किसी तरेह जमानत कराकर घर वापिस आया ,वे बोली पता नही कविता कैसी सुनते हो, मर्द होकर भी पिट जाते हो,

उनकी बातो से मेरा पुरुस जग गया,मैं वीर रस की कविता लिखने लग गया ,बहार से कवि सम्मलेन मैं जब मैंने वीर रस का एक गीत सुनाया उस्सका भी ग़लत परिणाम ही सामने आया ,मेरे ओजस्वी विचारो से लोगो के मन मैं जोश भर गया ,और वहां की व्यवस्था के प्रति आक्रोश बढ़ गया , लोगो ने अपना आक्रोश वहां खड़े एक आधी करी पर उतरा ,इस बात को लेकर आयाज्को ने मुझे बहुत मारा , मैं बहुत चीखा चिल्लाया ,किसी तरह लंगडाते हुए घर वापिस आया

मैंने फटापट उन्हें हाल सुनाया ,बे फिर बोली तुमने फिर गच्चा खाया ,मैंने कहा प्रिया कविता लिखना सरल हें ,पर सुनना बहुत कठिन हें, और अगर सुना दो, तो घर सही सलामत आना कठिन हें

ब्रज दीप सिंह (अभय)