तन्हाईयों की तनहा राहों से तनहा निकलना चाहता हू ,हूँ उदास मगर खुश रहना चाहता हू
देती हैं जिंदगी कदम कदम पे गम ,मैं उन गमो को पैमाने मैं पीना चाहते हू
नहीं हैं मुझे मेरे कल पे भरोसा ,मैं अपने आज को पूरा जीना चाहता हू
सोचता हू के होते मेरे भी मुक्कदर के शहर,फिर सोचता हूँ ये मैं क्या सोचे जा रहा हू
कुरेदते हैं जो जख्मो को नुमाइश के लिए ,मैं उन जख्मो पर मरहम लगाना चाहता हूँ
बदल दिया था मैंने अपने आप को इस ज़माने के लिए , मैं फिर अपने आप को पाना चाहता हूँ
कहते हैं होगा वहीँ जो चाहता हैं खुदा ,मैं उस खुदा के मनसूबे जानना चाहता हू
जिंदगी को जी रहा हू सर्कस बनाकर ,मैं इस जिंदगी के मायने जानना चाहता हूँ
करना चाहता हूँ मैं भी समंदर को पार ,पर मैं समंदर को तैर कर जाना चाहता हूँ
सभी नहीं होते हैं जहां मैं अपने दोस्तों ,मैं उन अपनों को पहचानना चाहता हूँ
हैं मुझे भी मेरे हमसफ़र का इंतज़ार,पर पहले मैं उसे आज़माना चाहता हूँ
जीने के होते हैं सबके अपने तरीके ,मैं उन तरीको को आजमाना चाहता हूँ
शायद खाली रख दिया हैं रब ने पन्ना मेरी किस्मत का ,मैं उसे खुद लिख के जाना चाहता हूँ
Saturday, April 10, 2010
Sunday, April 4, 2010
जिंदगी के खेल
जिन्दगी के भी खेल निराले हैं ,कभी खड़े होने की जगह नहीं
कभी बैठाने भी बाले हैं
आते हैं सब एक सा साजो सामान लेकर ,
लेकिन उनमे से कुछ अलग करने वाले हैं
जीते हैं सब ज़िन्दगी को एक उमंग के लिए
लेकिन गम और दुःख कहाँ साथ छोड़ने वाले हैं
कहते हैं सब के हम बनेगे सब से अलग
लेकिन पता चलता हैं के हम तो इसी भीड़ मैं चलने वाले हैं
करना चाहते हैं सब जीवन की पगदंद्दी को पार
लेकिन छोटे से मोड़ पर सब रोने वाले हैं
क्या पता कल किसका अलग हो दोस्तों
लेकिन हम तो यहीं जिंदगी की राहो मैं भटकने वाले हैं
कभी बैठाने भी बाले हैं
आते हैं सब एक सा साजो सामान लेकर ,
लेकिन उनमे से कुछ अलग करने वाले हैं
जीते हैं सब ज़िन्दगी को एक उमंग के लिए
लेकिन गम और दुःख कहाँ साथ छोड़ने वाले हैं
कहते हैं सब के हम बनेगे सब से अलग
लेकिन पता चलता हैं के हम तो इसी भीड़ मैं चलने वाले हैं
करना चाहते हैं सब जीवन की पगदंद्दी को पार
लेकिन छोटे से मोड़ पर सब रोने वाले हैं
क्या पता कल किसका अलग हो दोस्तों
लेकिन हम तो यहीं जिंदगी की राहो मैं भटकने वाले हैं
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