Saturday, January 4, 2014

खुला आसमान ही अपना आशियाना था शायद
महल कि चारदीवारी मैं अपना तो दम घुटता हैं
आ गये थे लोगो के बहकाबे मैं इन दीवारो के भीतर
फिर से खुली हवा मैं जाना अब सपना लगता है 

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