अभिमानो की चट्टानों पे बैठ कर देख रहे थे ,सुनहरे कल को ,सवारना चाहते थे अपने समाज को ,निपुण करना चाहते थे नई नस्ल को ,बनाया था मंजिलो का रास्ता अलग से ,करेंगे सरल जीवन की कठोर डगर को ,बना लिया था जीवन का उद्देशयबस धरातल पर उतरने की सोच रहे थे स्वप्न को ,अडचनोंके बारे मैं भी बना लिया था अपना नजिरया ,की दूंध कहाँ तक रोक पायेगी सूरज की किरण को ,पर देख न पाए थे समाज का वो रूप ,जो खोखला कर देता हैं हम जैसो के नज़रियो को ,नहीं मानते हैं ये भाई को भाई ,धूमिल कर देते हैं चरित्रवान के चरित्र को
दूसरो के जलते घरो को बना लेते हैं अलाब अपना ,महसूस भी नहीं करते हैं उसकी तपन को ,अपनों की परबह किसे ,देखते हैं दूसरो की जिन्दगी मैं ,कहीं तो मौका मिलेगा ,उनके मखोल को
4 comments:
यूँ ही लिखते रहें.. रोमन से देवनागरी में आये ..धीरे-धीरे सुंदर और स्पष्ट टाईप करने की आदत बन जायेगी.
गंभीर बात लिख दी यार। समझ रहा हूं। कई लाइनें बहुत गहरी लिखी हैं। बढ़िया। लेकिन हारना मत हम गैर वाले अपने हैं हमेशा तेरे साथ हैं बेटा। लगा रह।
आइना ऑफ समाज। पहले लगा कि गद्य है। पढ़ा तो लगा कि पद्य है। लेकिन लक्ष्य आपका किधर है समझ नहीं आ रहा। लेकिन अच्छा प्रयास किया है। हिंदी अच्छी टाइप करने लगे हो।
धूमिल कर देते हैं चरित्रवान के चरित्र को। ये लाइन बड़ी खूबसूरत है। दोबारा पढ़ी तो लगा कि सही रास्ते पर जा रहे हो। कोशिश ये करो कि बात एक बार में समझ आ जाए कि संदेश क्या देना चाहते हो।
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